Sunday, April 19, 2015

ये महलों, ये तख्तों, ये ताजों की दुनिया

ये महलों, ये तख्तों, ये ताजों की दुनिया 
ये इंसान के दुश्मन समाजों की दुनिया 
ये दौलत के भूखे रवाजों की दुनिया 
ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है 

हर एक जिस्म घायल, हर एक रूह प्यासी 
निगाहो में उलझन, दिलों में उदासी 
ये दुनिया है या आलम-ए-बदहवासी 
ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है 

जहाँ एक खिलौना है, इंसान की हस्ती 
ये बस्ती है मुर्दा परस्तों की बस्ती 
यहाँ पर तो जीवन से है मौत सस्ती 
ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है 

जवानी भटकती है बदकार बन कर 
जवां जिस्म सजते हैं बाजार बनकर 
यहाँ प्यार होता है व्योपार बनकर 
ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है 

ये दुनिया जहाँ आदमी कुछ नहीं है 
वफ़ा कुछ नहीं, दोस्ती कुछ नहीं है 
यहाँ प्यार की कद्र ही कुछ नहीं है 
ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है 

जला दो इसे, फूँक डालो ये दुनिया 
मेरे सामने से हटा लो ये दुनिया 
तुम्हारी है तुम ही संभालो ये दुनिया 
ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है

गीतकार : साहिर लुधियानवी, गायक : मोहम्मद रफी, संगीतकार : सचिनदेव बर्मन, चित्रपट : प्यासा (१९५७) / Lyricist : Saahir Ludhiyanvi, Singer : Mohammad Rafi, Music Director : Sachindev Burman, Movie : Pyaasa (1957)


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